जंगल में मुठभेड़
विकास वैभव
तीन सितंबर 2008 की वो सुबह मैं कभी नहीं भूल सकता जब रोहतास-कैमूर की पहाड़ियों पर एक गांव के स्कूल के पास हमारी नक्सलियों से मुठभेड़ हुई थी I सोली गांव धनसा घाटी से करीब 10 किलोमीटर दूर बसा है जहां दुर्गम रास्तों को पार करते हुए कोई पहुंच पाता है I रोहतास पुलिस स्टेशन से करीब 22 किलोमीटर के इस रास्ते पर हर कदम पर नक्सलियों ने लैंडमाइंस बिछाए थे I उन दिनों जिला पुलिस मुख्यालय से रोहतास तक 45 किलोमीटर की दूरी तय करने में पसीने छूट जाते थे I सड़क के रास्ते इस दूरी को तय करने में कम से कम तीन घंटे लग जाते थे I उसके बाद धनसा तक 22 किलोमीटर की दूरी कच्ची सड़क से तय करनी होती थी जिसमें करीब आधा घंटा लगता था I इसके बाद पहाड़ी के दूसरी तरफ अधौरा पहुंचने के लिए करीब 40 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी I यह समूचा जंगली रास्ता था और 2008 में भी संचार का कोई साधन भी नहीं था I वायरलेस सेट से पुलिस मुख्यालय से संपर्क करना मुश्किल था और समुद्रतल से 1500 फीट की ऊंचाई पर बसे इस पहाड़ी इलाके में एक भी मोबाइल टावर तक नहीं था I शायद यही वजह थी कि नक्सलियों ने इस पूरे इलाके में अपना साम्राज्य कायम कर रखा था I इन पहाड़ियों पर एक ही पुलिस थाना था अधौरा, जहां रोहतास की ओर से पहुंचना आसान नहीं था I बाद में हम इन पहाड़ियों पर ऑपरेशन के दौरान संचार के लिए सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करने लगे थे लेकिन उस सुबह हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं था I हमने ऑपरेशन के लिए बेहद सधी रणनीति अपनाई I
इस एनकाउंटर के बाद सुबह करीब 8 बजे हम अधौरा पहुंचे |
चूंकि 4 अगस्त 2008 को मैंने रोहतास एसपी का चार्ज लिया था, इसलिए यह जिला मेरे लिए नया था I नक्सल प्रभावित जिले के पुलिस अधीक्षक के तौर पर मेरी पहली प्राथमिकता इस समूचे इलाके और यहां के भूगोल को समझने की थी I मुझे सुरक्षित बेसों की जरूरत थी जहां हमारे जवान कैंप कर सकें और जंगलों में ऑपरेशन शुरू किया जा सके I इससे पहले मुझे नेपाल बॉर्डर पर बगहा के जंगलों में काम करने का अनुभव था जहां नक्सलियों पर काबू पाने में कामयाब रहे I वहां हमने सुनियोजित तरीके से ऑपरेशन और स्थानीय लोगों की मदद से काम किया I लेकिन रोहतास का इलाका बगहा से ज्यादा कठिन था I बगहा में एक भी आईईडी ब्लास्ट की घटना सामने नहीं आई थी जबकि रोहतास में आए दिन ऐसी घटनाएं होती थीं जिससे सुरक्षा बलों को नुकसान उठाना पड़ता था I हालांकि दोनों ही जिलों में पक्की सड़कें नहीं थी लेकिन रोहतास में आईईडी का खतरा मंडराता रहता था I अगर कोई ऑपरेशन करना हो तो नक्सलियों के गढ़ में घुसने से पहले 22 किलोमीटर तक लैंडमाइंस वाली सड़कों से ही होकर जाना पड़ता था I ऐसे दुर्गम इलाके में अगर पैदल चलना हो तो दिनभर में 10 किलोमीटर से ज्यादा नहीं चला जा सकता था I मैं चाहता था कि अपने ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम दूं जिसके लिए टीम के लीडर को इलाके की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी I इसके लिए हम जवानों के साथ गाड़ियों से रातोंरात पहाड़ियों तक पहुंचते ताकि सूरज निकलने के बाद दो घंटे के भीतर ही ऑपरेशन वाले इलाके में मौजूद रह भ्रमण कर ईलाके को देख और समझकर सुरक्षित लौट सके और आश्चर्य के कारण शत्रु तब तक हमारी योजना का अनुमान भी नहीं लगा सके । लौटने के लिए हमने उसी रास्ते का इस्तेमाल कभी नहीं किया I
रोहतास-अधौरा रोड |
जिले में एक महीने बीतते-बीतते इलाके की पूरी जानकारी हासिल कर ली गई I हमने पहाड़ियों के तीन चक्कर लगा लिए I इस दौरान समूचे इलाके में ऐसे जगहों की कई तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद कर ली जिनकी फोटोग्राफी शायद पहले कभी नहीं की गई थी I मैंने पहाड़ियों पर बसे धनसा और बुधुआ के स्कूलों और रेहल में वन विभाग के क्षतिग्रस्त रेस्ट हाउस को देखा I हम रोहतासगढ़ किले में दो बार रुक चुके थे I पहाड़ का मोहक नजारा मेरी नजरों में कैद हो गया था और इस जगह पर मुझे दोबारा आने का मन कर रहा था I मैं सोली में स्थित स्कूल में जाना चाह रहा था I मुझे बताया गया था कि ऑपरेशन के दौरान वहां करीब 200 लोग ठहर सकते हैं I जब मैं कमलजीत सिंह से मिला तो यह बात मेरे दिमाग में थी I भारतीय वन सेवा के अधिकारी कमलजीत ने हाल ही में रोहतास के डीएफओ के तौर पर ज्वाइन किया था I इससे पहले भी मैं कमलजीत से बगहा में भी मिला था जब वहां उनकी ट्रेनिंग चल रही थी I कमलजीत भी रोहतास के जंगलों को देखना चाहते थे लेकिन इलाके में संभावित खतरे को लेकर चिंतित भी थे I यहां नक्सलियों ने 2002 में तत्कालीन डीएफओ की हत्या कर दी थी I मैंने सोली में होने वाले ऑपरेशन में उनसे भी साथ रहने को कहा. क्योंकि पुलिस की सिक्योरिटी में वो आराम से जंगलों को देख सकते थे I
संभावित खतरे |
इस तरह 2 सितंबर 2008 की रात करीब 8 बजे ऑपरेशन की प्लानिंग बनी I मैंने एसटीएफ की एक टुकड़ी को डेहरी-ऑन-सोन में अपने आवास पर आधी रात को रिपोर्ट करने को कहा I इसके अलावा डेहरी और सासाराम के एसडीपीओ को भी बुलाया I उस वक्त डेहरी के एसडीपीओ मिथिलेश कुमार सिंह एक तेजतर्रार पुलिस अफसर थे जिन्होंने नक्सलियों के खिलाफ कई ऑपरेशन को कामयाबी से अंजाम दिया था I उस वक्त सासाराम के एसडीपीओ और एएसपी पी कन्नन ने हाल ही में सर्विस ज्वाइन किया था I ये दोनों ही अफसर अगले ऑपरेशन के लिए किसी भी वक्त तैयार रहते थे I
धनसा घाटी |
आधी रात को थोड़ी सी ब्रीफिंग के साथ ही ऑपरेशन शुरू हो गया I हमारा मकसद था कि सूरज निकलने से पहले ही धनसा पहुंचा जाए I नक्सलियों के लिए रात के समय दूर से पुलिस की गाड़ी पहचाना पाना आसान नहीं होता है I उस वक्त इंद्रदेव की कृपा भी हमारे ऊपर रही I रास्ते में हल्की बारिश हुई और हमारे धनसा पहुंचने की किसी को भनक तक नहीं लगी I जब हम रोहतास से धनसा पहुंचे तो रास्ते में कुछ ट्रैक्टरवाले मिले जो हमें हैरान होकर देख रहे थे क्योंकि आमतौर पर पुलिस की गाड़ियां इस रूट पर नहीं चलती थीं I प्लानिंग के मुताबिक हम तड़के साढ़े चार बजे धनसा पहुंचे I मेरे साथ डीएफओ और एएसपी सासाराम एक सिविलियन टवेरा में बैठे थे I ऐसी गाड़ियों में चलने से नक्सलियों को पुलिस के मूवमेंट की जानकारी नहीं मिलती I हालांकि, डेहरी एसडीपीओ पुलिस की जीप में आगे वाली सीट पर बैठे थे I
धनसा घाटी |
सोली का स्कूल रोहतास-अधौरा रोड से से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर पड़ता था I हम जैसे ही सोली के करीब पहुंचे, मिथिलेश जी जो काफी पहले सोली गांव आए थे रास्ता भटक गए I मेरे ड्राइवर इंद्रदेव यादव ने यह गलती पकड़ी और तेजी से पीछा करते हुए अपनी गाड़ी काफिले में सबसे आगे कर ली I इंद्रदेव अधौरा के पास ही के गांव के रहने वाले थे इस वजह से वो इस इलाके से अच्छी तरह से वाकिफ थे I मेरे पीछे बीएमपी पहली बटालियन के जवानों से लैस एक बुलेटप्रूफ जिप्सी थी I उसके पीछे एसडीपीओ डेहरी और उनका एस्कॉर्ट वाहन था I एसटीएफ और सैप का दस्ता एक साथ चल रहा था I सैप के जवान एंटी-लैंडमाइन वाहन पर सवार थे I एसटीएफ के जवान चार वाहनों में थे जिनमें एक एंटी-लैंडमाइन वाहन भी था I इस तरह 9 वाहनों में सवार करीब 60 लोगों का दस्ता सोली की तरफ बढ़ रहा था I
रोहतास-अधौरा रोड |
जब हम सोली गांव में पहुंचे तो सुबह के करीब 5 बज रहे थे I सूरज निकलने लगा था I गांव के लोग अपने काम में जुटे हुए थे I सोली स्कूल गांव के बीचोंबीच था और उसके आसपास कुछ दूरी पर घर बसे थे I मेरी गाड़ी जैसे ही स्कूल के मेन गेट पर पहुंची, मैंने देखा कि वहां खड़ा एक शख्स अपनी रायफल (एसएलआर) का मुंह हमारी तरफ किए खड़ा है I उसके और हमारी गाड़ी के बीच महज 6 से 8 फीट का फासला रहा होगा I अगर वो फायर कर देता तो यह कहानी बताने के लिए हममें से कोई जिंदा नहीं बचता I लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था I हम नक्सलियों के प्रभाव वाले ऐसे इलाके में थे जहां 20 किलोमीटर के दायरे में संचार का कोई जरिया नहीं था I हमें इसकी एकदम उम्मीद नहीं थी कि एक हथियारबंद नक्सली हमें इतने करीब मिलेगा I चूंकि हमने इस स्कूल का दौरा करने की प्लानिंग की थी और इस इमारत में नक्सलियों की मौजूदगी के बारे में हमने सोचा भी नहीं था I एसएलआर देखकर कुछ पल के लिए मुझे लगा कि यह पुलिस का कोई संतरी है जो यहां ड्यूटी पर है लेकिन यह समझते देर नहीं लगी कि हम दुश्मन के करीब आ गए हैं और बचना है तो तत्काल कोई एक्शन लेना होगा I
सोली का स्कूल |
उसे देखकर ड्राइवर जैसे ही चिल्लाया, उस नक्सली संतरी को अहसास हो गया कि सिविलियन वाहन में पुलिस स्कूल के पास पहुंच गई है I वो हमें देखकर शायद घबरा गया और हमारे ऊपर फायरिंग करने के बजाय अपने साथियों को अलर्ट करने स्कूल के अंदर भागा I हमलोग भी फुर्ती दिखाते हुए गाड़ी से उतरे और जो भी सुरक्षित लगा, उस पोजीशन में आ गए I इसी दौरान स्कूल की छत पर लेटे एक नक्सली ने हमारे ऊपर फायरिंग शुरू कर दी ताकि उसके साथी स्कूल से सुरक्षित भाग निकलें I हम भी स्कूल की बाउंड्री को कवर लेते हुए फायरिंग करने लगे I इस बीच गांव में चारों तरफ से करीब 50 नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी I करीब 25 स्कूल की इमारत में छुपे थे जबकि अन्य 25 गांव के ही अलग अलग घरों में ठहरे हुए थे I इन सभी ने एक ही साथ अंधाधुंध फायरिंग कर दी ताकि पुलिस कन्फ्यूज हो जाए I
सोली का स्कूल |
हम सभी जैसे ही कवर लेने के लिए वाहनों से उतरे, हमारी गाड़ियों से वहां का रोड ब्लॉक हो गया I इन गाड़ियों के काफिले में एंटी लैंडमाइन व्हीकल भी थे लेकिन रास्ता जाम होने की वजह से ये आगे नहीं बढ़ सकते थे I करीब 10 मिनट तक तो हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए और इस दौरान दोनों तरफ से करीब सैकड़ों राउंड फायरिंग हो चुकी थी I इस फायरिंग का फायदा उठाकर नक्सली स्कूल से सटे जंगलों में भाग रहे थे I हमें स्कूल के पीछे वाले गेट के बारे में पता नहीं था जो जंगल की तरफ खुलता था I मैं देख पा रहा था कि कुछ नक्सली उसी गेट के रास्ते बचते बचाते भाग रहे हैं I ऐसा लग रहा था कि उनमें से दो जख्मी हैं I फायरिंग जारी रहने के दौरान ही एंटी लैंडमाइन वाहन के ड्राइवर ने वाहन को खेतों के रास्ते स्कूल की तरफ मोड़ दिया I हथियारबंद वाहन को अपनी तरफ आता देख स्कूल की छत पर छिपा नक्सली फायरिंग करते हुए जंगलों की तरफ भागने लगा I करीब 15 मिनट के बाद अब तय हुआ कि स्कूल कैंपस में घुसा जाए जहां करीब 100 छात्र दहशत के माहौल में फंसे हुए थे I इन बच्चों ने शायद ही पहले कभी ऐसी दहशत देखी हो I इन स्टूडेंट्स की वजह से ही हमने स्कूल को टारगेट कर ग्रेनेड या अन्य किसी ब्रस्ट फायर का इस्तेमाल नहीं किया जबकि नक्सली हमारी तरफ लगातार फायरिंग करते रहे I इसी दौरान वहां खंभे की ओट लेकर छिपा एक नक्सली दिखा जिसे सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया I बाद में उससे पूछताछ के दौरान पता चला कि स्कूल कैंपस में नक्सलियों ने पिछले हफ्ते से एक मेडिकल कैंप लगा रखा था और अपनी पनाहगाह के तौर पर स्कूल कैंपस का इस्तेमाल कर रहे थे I
सोली |
गोलियों की आवाज जैसे ही थमी, हमने स्कूल परिसर की तलाशी लेनी शुरू की I उस वक्त मौके से दो पुलिस रायफल, अन्य हथियार, गोला-बारूद, दवाइयां और नक्सली साहित्य बरामद किए गए I हमने तय किया कि अब यहां ज्यादा वक्त ठहरना ठीक नहीं होगा क्योंकि वहां से भागे नक्सली हमारे ऊपर आगे जाकर कहीं घात लगाकर हमला कर सकते थे I इस तरह करीब 5.40 बजे हम वहां से निकल पड़े और तेजी से अधौरा की तरफ बढ़ने लगे I हम सोली से 25 किलोमीटर दूर लोहरा गांव पहुंचे जहां मोबाइल टावर काम करते थे और मैंने पुलिस मुख्यालय को ताजा घटना के बारे में जानकारी दी I
इस एनकाउंटर के बाद सुबह करीब 8 बजे हम अधौरा पहुंचे |
मुझे इस बात की खुशी हो रही थी कि हम नक्सलियों की मांद में हमला करने के बाद हम सुरक्षित निकल चुके थे I स्कूल में हुए एनकाउंटर के वक्त दुश्मन की गोलियां हमारे काफी करीब से निकल रही थीं, ऐसे में हमने अपने शरीर की तरफ देख रह थे कि कोई नुकसान तो नहीं हुआ है I करीब सैकड़ों राउंड फायरिंग के बावजूद हमारे 60 लोगों में से किसी का भी बाल बांका नहीं हुआ था I मुठभेड़ के बाद नक्सली अपना सुरक्षित ठिकाना छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए थे I ऐसे दुर्गम इलाके में दुश्मन से लोहा लेने के लिए न सिर्फ ताकत चाहिए, बल्कि दिमाग और फुर्ती की जरूरत है I इस एनकाउंटर के बाद सुबह करीब 8 बजे हम सुरक्षित अधौरा पहुंचे I
इस घटना को मैं जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगा I अधौरा में चाय-नाश्ते के बाद हम मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचे और मुश्किल घड़ी में हमारी मदद के लिए ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया I
मुंडेश्वरी मंदिर |
जब हम सोली पहुंचे थे और वहां एकाएक जो हमारे साथ हुआ, वो मैं कभी नहीं भूल सकता I यह एनकाउंटर हालांकि बेहद खतरनाक था लेकिन जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि हाल के दिनों में नक्सलियों के हमले में सुरक्षाबलों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था I जुलाई 2007 में राजपुर और बघैला पुलिस स्टेशनों पर नक्सलियों के हमले में काफी क्षति हुई थी I उसी साल जून के पहले हफ्ते में धनसा के पास लैंडमाइन ब्लास्ट में सीआरपीएफ के 2 जवान शहीद हो गए थे I रोहतास के मैदानी इलाकों में ही अप्रैल 2006 में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में बिक्रमगंज के डीएसपी शहीद हो गए थे I
धनसा घाटी |
रोहतास में मुठभेड़ की घटनाएं ज्यादातर नक्सलियों के पक्ष में जाती थीं जो वहां के पहाड़ी और जंगली इलाके का फायदा उठाकर भाग निकलते थे I नक्सली इस इलाके में स्थित पहाड़ियों में अड्डा जमाए रहते थे और मौके का फायदा उठाकर मैदानी इलाकों में पुलिस पर हमला कर देते थे I लेकिन सोली का एनकाउंटर ऐसा नहीं था I यह नक्सलियों की मांद में ही हुआ था और नतीजे हमारे पक्ष में रहे I हालांकि, हमारी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रह पाई. क्योंकि दूसरे ऑपरेशन में 24 सितंबर 2008 को सोली के नजदीक रोहतास-अधौरा रोड पर लैंडमाइन ब्लास्ट में सैप के जवान कन्हैया सिंह शहीद हो गए I यह एक अलग कहानी का हिस्सा है I बाद में कैमूर की पहाड़ियों पर हुए बड़ा ऑपरेशन चला जिसे 'ऑपरेशन विध्वंस' का नाम दिया गया I 4 अक्टूबर
2008 को शुरू हुआ यह ऑपरेशन कई चरणों में करीब 6 महीने तक चला था जब भारी तादाद में सुरक्षाबलों ने पहाड़ियों पर गश्त की I इसके बाद इलाके में कम्यूनिटी पुलिसिंग का अभियान चलाया गया जिसे 'सोन महोत्सव' का नाम दिया गया I कम्यूनिटी पुलिसिंग प्रोजेक्ट को इस क्षेत्र के इतिहास और विरासत से प्रेरणा मिली जो स्थानीय लोगों के बीच काफी मशहूर हुआ और वहां की जनता पुलिस की मदद से नक्सलियों से लड़ने में कामयाब रही I
अति रोमांचक रिपोर्ताज ,आप तो सधे हुए लेखक है,इस घटना से सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ेगा , सैह ही दुर्गम स्थान की जानकारी भी मिलेगी सभी को , आपको बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteThanks.
Deleteजबरदस्त लेखनी ,,बेहतरीन प्रदर्शन सर कलम और बन्दूक दोनों का ....ईश्वर की कृपा सदैव बनी रहें ।।
DeleteGreat Sir.
ReplyDeleteGreat Sir.
ReplyDeleteJai hind
ReplyDeleteA big Salute to your courage and dedication sir.Wish you set lot more benchmarks in coming days.which ultimately inspire the youth sir.
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ReplyDeleteSir pranam
ReplyDeleteSir aapne rohtas ke liye jo kiye
Hamlog uske rini hai.
Aapki kami khalti hai sir.
Aapne jo lakir khicha hai usse naxliyo ke chul hil gaye
Kamlesh Kumar
Sir pranam
ReplyDeleteSir aapne rohtas ke liye jo kiye
Hamlog uske rini hai.
Aapki kami khalti hai sir.
Aapne jo lakir khicha hai usse naxliyo ke chul hil gaye
Kamlesh Kumar
Great...
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ReplyDeleteI will prefer and would like to call you bhaiya. It's a tragedy that an honest and courageous cop is out of main streamline in bihar police. But no need to worry for me or any body, at least you exists and you will. That day will come as dawn of honesty again. God bless you and God bless all honest cops of our state.
ReplyDeleteGreat Sir.
ReplyDeleteit's really interesting and learning sir.i got to know about your affection towards your duty
ReplyDeleteआपको उस बहादुरी के लिए बहुत साधवाद।
ReplyDeleteआपको उस बहादुरी के लिए बहुत साधवाद।
ReplyDeleteThough i meant to do it way earlier but was never getting the time. Today, however, I finally got around to reading this first-hand account of yours, & I'm glad that i did. It's a highly detailed piece & very engrossing. Thank you for sharing your experiences. Civilians like us can only imagine how dangerous it would have actually been. Hats off to you & your team.
ReplyDeleteThanks for reading through and appreciating. This is a translation from the Original at http://copinbihar.blogspot.in/2016/07/fire-and-forest.html
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletegreat sir,
ReplyDeletegreat sir,
ReplyDeleteईस काम का अलग से पुरस्कार मिलना चाहिय
ReplyDeleteअंधी सरकार है
युग युग तक रोहतास के लोग पूरे बिहार आपका नाम लेगा विकास वेभव 👍👍
एक साँस मे पढ गया ।।।।
ReplyDeleteएक बेहद रोमांचक व साहसिक सत्य घटना का बेजोड़ साहित्यिक चित्रण, वह भी इस घटना के नायक की कलम से ।।।।
धन्यवाद आपका श्रीमान ।।।।।
जय हो सर की
ReplyDeleteरोमांचक एवं प्रेरक। आपके साथ काम करने वाले कुछ अधिकारियों से टुकड़ों में यह क़िस्सा सुन चुका हूँ ,कि कैसे उन्हें भी ऑपरेशन के कुछ देर पहले तक इस ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी !
ReplyDeleteआपकी बहादुरी और पोलिसिंग का तरीका दूसरे अफसरों के लिये नज़ीर है।
ReplyDeleteसाहसिक कदम हमारे समाज के लिये।विपरित हालातो मे भी अपना धैर्य बनाए रखना चाहिए।जय हिंद।
ReplyDeleteजीवंत चित्रण sir जैसे सबकुछ आंखों के सामने हो रहा हो। जीवन के इन अनुभवों को इसी तरह साझा करते रहे...आभार आपका
ReplyDeleteजीवंत एवम संवेदनशील चित्रण ,,,
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Sir
ReplyDeleteNaksali aaj v bharat mai cancer ki terah hai.
Koi aisa kadam hai jise ya purntaya khatam honjaye.
बहुत ही मार्मिक और प्रेरणादायक चित्रण🙏👏
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